गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

सीधी और sachchi

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
बहुत दिनों की बात है.एक घर में दो पुत्रियाँ थी.दोनों बहनें एक दुसरे के साथ ही ज्यादा समय बिताती थी.यह अंग्रेजों का ज़माना था.हिन्दू परिवार में औरतें अपना निर्णय नहीं लिया करती थी.लड्कियों की शादी १०-१२ साल होते होते कर दी जाती थी।घर और परिवार में समय बिताना ,अपनों से बड़े और छोटों का ख्याल रखना उनका प्रमुख काम हुआ करता था.SHIKSHA मुख्यतः पति और ससुराल वालों की सेवा पर केन्द्रित हुआ कटी थी।
इसी तरह दिन कटे गए .दोनों बहनें १२ साल की हो गयी.पंडित जी ने एक सभ्य और सुशील परिवार के दो सगे भाइयों से दोनों बहनों का रिश्ता तय कर दिया और नियत दिन में दोनों बहनों की शादी हो गयी।
यह कहानी का एक भाग है.दूसरा भाग भी भरतीय कहानी की तरह ही होगा.यह तो आपने सोच लिया होगा.दोनों बहनें एक ही घर में गयी.उस जमाने में अपना अस्तित्व नहीं होने के कारन बहनों में आपसी बैर कम ही होती थी.किन्तु नियति में कुछ और था.बड़ी बहन के पति उद्यमी और विवेकशील भी थे परन्तु छोटी बहन के पति न उद्यमी और न ही संयमी थे.बड़ी बहन को पांच पुत्र और एक पुत्री हुए ,छोटी बहन निसंतान रह गयी.बड़ी बहन के पति ने खेती पर ध्यान दिया और छोटी बहन के पति ने अपने हिस्से के ज़मीन बेचने शुरू कर दिए.अंततः पूरी ज़मीन बिकने के बाद उनके पास कुछ भी न रहा .इधर नए बच्चों में अपनी माँ के साथ साथ दूसरी माँ का प्यार भी उतना ही मिल रहा था.दूसरी माँ ज्यादा समय अपनी बहन के बच्चों के साथ बिताती थी.बच्चे भी धीरे धीरे दूसरी माँ के पास ज्यादा जाना चाहने लगे।
यहाँ से आपसी रंजिश शुरू हुई.जो औरतों के बीच होने के कारन विकराल रूप नहीं ले सका.लें बहनों के आपसी सम्बन्ध जरूर ख़राब होने लगे.उस ज़माने में औरतों को यह सब बातें करने की इज़ाज़त नहीं थी.इसलिए यह विवाद दोनों बहनों के बीच में ही रह गया।
समय बिताता गया एक और पीढ़ी तब तक तैयार हो गयी.उनक झुकाव भी दूसरी माँ की तरफ ही ज्यादा थी.बड़ी बहन अब तक विधवा हो गयी.छोटी बहन भी कुछ ही दिनों बाद विधवा हो गयी।
समय ने एक बार और पलता खाया.बच्चों ने अपनी जिम्मेवारी समझी और आर्थिक मदद बड़ी बहन को दिया जाने लगा जो अपनी माँ थी.छोटी बहन तिरस्कृत रह गयी.अब ऐसा समय आया की दोनों पीढियां अपने -अपने में व्यस्त हो गया और बड़ी बहन तो सुखी थी परिवार और बच्चों में छोटी बहन तिरष्कृत रह गयी.उसक प्यार काम न आया दूसरी पीढ़ियों को और कुक समाप्ति न होने की वज़ह से वोह उपेक्षिता की ज़िन्दगी बिताने लगी.हमने सुना बहुत सरे रोगों ने उनको जाकर लिया था.और गरीबी ने पूरी तरह तोड़ दिया था.मरने का एकमात्र उपाय उपवास था और वोह नित्य उपवास रखकर भगवन की प्रार्थना करने लगी।
इस तरह उनका अंत हुआ.

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

उसकी माँ

कुछ दिन पहले कक्षा दस में पढ़ रही बेटी ने "उसकी माँ" कहानी का जिक्र किया.पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र की लिखी कहानी पढ़कर काफी प्रभावित थी वह.उसने तो यहाँ तक कह डाला की इनसे अच्छा
कोई हिंदी लेखक नहीं हो सकता.खैर मेरा इन सब से बहुत असर नहीं पड़ा मैं प्रभावित था उसकी संवेदना को देखकर।

हृदय खुश हुआ यह सोचकर की आज भी संवेदना जीवित है इन छोटे बच्चों में।

हमने कहानी संकलन में यह कहानी पढ़ी थी,स्कूल में
। हम भी इसी तरह काफी व्यथित हो गए थेs . कहानी है एक माँ ,उसके क्रन्तिकारी पुत्र ,और उसके कुछ मित्रों का जो आज़ादी के जंग में गिरफ्तार हुए और शायद अंततः उन्हें फांसी की सजा हुई.एक माँ और उसके देशभक्त पुत्र के स्नेह और प्यार का अद्भुत चित्रण है.बच्चों द्वारा मां को पत्र लिखना और ऐसा पत्र जिससे यह न पता चले के यह बच्चे फांसी की सजा पाए हुए हैं.माँ को मिलना,हसना खेलना. अंत में बच्चों को फांसी की सजा होती है और बच्चे जो एक दिन पहले माँ से मिलकर आये थे अंत तक माँ को खुश रखने की कोशिश करते हैं और जिस दिन फांसी की सजा होती है उसी दिन माँ मृत पायी जाती है अपने चौखट के बाहर और उसके हाथ में बच्चों का आखिरी पत्र होता है।
माँ की ममता ,उसकी करुना और उसका प्यार इसके बाहर जा कर न हमने सोच न हमारी बिटिया ने.हम दोनों ने चर्चा की और कहानी को महसूस किया।
आज के सन्दर्भ में अगर बुद्धिजीवियों से इसकी चर्चा करें तो स्त्री पराधीनता से लेकर पुरुष प्रधान समाज सबको इस कहानी के ब्याख्या से जोड़ दिया जायेगा और मूल बात जो माँ की ममता और देशभक्त जवानों की वीरता सब कुछ गौण हो जायेगा।
मुझे अच्छा लगा अपने बच्चे से इसका जिक्र सुनकर और हमने अपने आप को सीमित रखा कहानी के अक्षरों तक.

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

"वाद"

क्षेत्रवाद,जातिवाद,धर्मवाद,इत्यादि ऐसी परम्पराएँ हैं जिसका विरोध दिखाने के लिए हर कोई करता है लेकिन समर्थन भी , अपने अंतर्मन से , हर कोई कर रहा है.इतिहास गवाह है कोई भी दो क्षेत्र आपस में सहमति से एक दुसरे के साथ नहीं हुए हैं जब तक किसी एक के राजा ने दुसरे से उसे छीना न हो.किसी भी द्वन्द या विरोध की शुरुआत अभाव से होती है.अगर संमाज में हर सदस्य एक दुसरे का मोहताज न हो तो संमाज में आपसी द्वन्द ही न हो.कोंई भी समाज या क्षेत्र दुसरे क्षेत्र के लोगों को तब तक ही स्वीकार करेगा जब तक उसकी अपनी सुख सुविधाओं पर कोंई असर न हो.अपना स्वार्थ जिस दिन से प्रभावित होने लगेगा उस दिन से ही विरोध शुरू हो जायेगा।
मुंबई में जो हुआ वह आज या कल कोलकाता में होगा, चेन्नई में होगा और अन्य बड़े शहरों में भी होगा.जरूरत है बिहार की सरकार और केंद्र सरकार को इसके मानसिक और सामाजिक पहलू को समझ कर बिहार को आगे बढ़ने का.उड़ीसा जो आज से कुछ वर्ष पहले तक बहुत पिछड़ था आज उद्योगों को बढ़ावा दे रह है और वहां काफी संख्या में नए उद्योग लग रहे हैं और वहां के लोग जो किसी और राज्य में थे वापस आ रहें हैं या आना चाह रहे हैं.जो वहां वापस आ चुके हैं उनकी इच्छा भी अपने लोगों को वापस लाने की है.प्रबंधन के असहयोग के कारन वोह सफल नहीं हो रह हैं लेकिन उनकी पूरी कोशिश रहती है.क्या बिहार ऐसा नहीं हो सकता है.जरूरत है एक सफल प्रयास की और सरकार को अपने लोगों का दर्द समझने का.

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

akelapan

काफी ब्यस्त जिंदगी है.सुख सुविधा और समाज के आडम्बर पर घर छोड़ा,माँ-बाप से दूर अपनी पत्नी और दो बच्चों को aircondition जिंदगी देने के लिए .अंग्रेजी स्कूल की पढाई देने के लिए और television के बनावती नाटक दिखने के लिए.काफी दिन हो गए .शुरू-शुरू में सब अच्छा लगता था.अब लगता है की कुछ नहीं मिला.बच्चो की अच्छी पढाई के बदौलत उनको अच्छी नौकरी मिल जाएगी फिर उसके बाद.जिस माँ ने इतने मुश्किल से पाला,जिस बाप ने अपनी सुख छोड़ कर हमें इस नौकरी के लायक बनाया उसका ज़िक्र मात्र ही ज़िन्दगी से समाप्त होता जा रहा है.वोह दोनों अकेले जिंदगी की शाम गुजर रहे हैं.पहले गर्मी की छुट्टियों में घर जाता था.बच्चे पूरी गर्मी छुट्टी वहां बिताते थे.अब तो वोह भी बंद.पुरे साल में एक या दो बार दो-चार दिन के लिए ही जा पाटा हूँ.आज के माहौल में उन्हें हमारी बंद कमरों की जिंदगी पसंद नहीं है,और हम लोग भी उनकी स्वतंत्रता बाधित नहीं करना चाहते हैं.फलतः वोह भी अकेले और आज की असुरक्षित समाज में जी रहे हैं और हम केवल दूर से उनकी स्वस्थ जिंदगी की कामना करते हैं.

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

नया और चमकता bharat

आज की ताजा खबर.भारत में जो गरीबों की आबादी २००४ में २७.५ प्रतिशत थी ,अब बढ़कर ३७.२ प्रतिशत हो गयी है.कुल मिला कर गरीबों की आबादी १० करोड़ से भी ज्यादा है.भारत सरकार के आकलन का basis जो लोग एक बार का भोजन पाने में समर्थ हैं वोह लोग गरीबों की श्रेणी में नहीं आते हैं।
वाह सरकार,वाह भारत और हम सब मूढ़ जनता .उद्योगपतियों को खूब उधार दो क्योंकि इससे आपका भी भला होगा और गरीब तो अभिन्न अंग हैं उनका हमारे से क्या मतलब उनपर पैसा लगाना बेवकूफी है.

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

सुबह उठने की आदत है। आज भी रोज की तरह सुबह ५ बजे उठा .गर्मी में कोएल की कूक ही नींद टूटने का सबसे bada कारन है.बहार निकल कर देखा तो आस पास के लोग भी धीरे धीरे अपनी दिन की शुरुआत में लगे थे.लेकिन गर्मी अपने चरम पर थी.फिर सोचा धरती का तापमान किस हद तक बढ़ते जा रही है.वातानुकूलित कक्षा में सोने और काम करते करते मनुष्य बहार की अबोहवः से दूर होता जा रहा है.concrete जंगल से सारा शहर भरा पड़ा है.पेड़,पौधे अब किताबों में सिमट कर रह गए हैं,अपनी जरूरत के लिए हम लोग प्रकृति से दो दो हाथ करने चले हैं.हम भूल जा रहे हैं की प्राकृत के श्रोत सिमित हैं और इनका उपयोग इनकी बहुलता को कम किये जा रहा है और इस प्रकार इसका दुरूपयोग करके हम लोग अपने भविष्य का कब्र खुद खोद रहें हैं।
लोग शहर की तरफ अपना सब कुछ छोड़ कर भाग रहें हैं केवल सुविधा की तलास्श में शायद उनेह पता नहीं की शहर का ये सुख कितना कम दिनों का है.कहाँ गए वोह अलमस्त बचपन के दिन.वोह बड़े से आँगन में खेलना,वोह दादी की डपट,वोह उनके किस्से,वोह अमरुद के पेड़ पर चड़ना वोह तलब में तैरना,दोपहर में में दादी से चुराकर बाग़ में जाना और आम की पेड़ की चों में में सोना.सब अब केवल सपना रह गया है.

पानी और भविष्य

आज सुबह अपनी ऑफिस को जाते समय पत्नी को स्कूल छोड़ा और वापस ऑफिस के तरफ निकला.रास्ते में रिहायशी इलाकों से जब निकल रहा था तो जगह जगह पानी के टंकर खड़े थे.क्या पानी की इतनी किल्लत हो गयी है.किसी ने कह था की तीसरी विश्व युद्ध पानी को लेकर होगा हम कहाँ जा रहें हैं.औदोगीकरण के अंध गलियारे में कहीं हम भटक तो नहीं रहें हैं.औद्योगीकरण से natural रेसौर्स का दोहन कर हम कहीं अपना भविष्य तो नहीं बेच रहे हैं.अगर इतना कम औद्योगिक जगह में पानी का यह हाल है तो पानी का बड़े शहरों में क्या होगा.