शनिवार, 26 जून 2010

सावन

सावन के साथ मोनसून ने भी दस्तक दे दी है.धरती तर हो रही एक अरसे के बाद.गर्मी की तपिश से एक राहत मिली है प्रकृति को, जो प्रकृति के चेहरे पर झलक रहा है.प्रकृति को राहत मिली है न सिर्फ तपिश से बल्कि मानवीय आपदाओं से भी.सड़के सूनी है,कोंक्रीट का जंगल बनाना थम गया है.पेड़ काटना रुक सा गया है.प्रफुल्लित है प्रकृति इस भ्रम में मानो यह सारा सदा के लिए रुक गया है.जिस मानव को उसने जिन्दगी दी थी वह उसकी जड़ काटने में लगा था.प्रकृति सोच रही यह आनंद मानो सदा के लिए है.इस क्षण को भरपूर जी लें चाहती है वह क्षण भर में आकाश को चूमना चाहती है.उसे कल और आज की चिंता नहीं है जरूर कुछ बिछड़ों की तलाश होगी उसे जो कभी उसके हिस्से का धुप पी लेते थे आज नहीं होंगे फिर भी उमंग है आज जीने में।
"बागों में झूले जब लहराए,गीत मिलन की सबने गाये
सखियों ने पुछा बोल सखी री तेरे साजन क्योँ न आये।"

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