रविवार, 18 जुलाई 2010

बरात

दामाद विष्णुतुल्य होता है.कैसे कोई उससे पहले पैर धुला सकता है,मैं तो सोच भी नहीं सकता कि पैसा किसी को इतना अँधा बना देगा ,सारे सम्माज में थू-थू हो रही है आज काशी बाबु का और दामाद भी तो बारात छोड़ कर बिना कुछ खाये पिये वापस आ गए। क्या कहूँ सुशील की मां,
मेरी इच्छा तो दामाद के साथ लौट आने की थी लेकिन घर की बात थी.मन मार कर खाना खाया हमने । सुबह तक पुरे गाँव में यह गनगना गया की गौरी बाबु के बेटे की शादी से उनके भाई का दामाद बिना खाए-पिए लौट आया.गौरी बाबु इन बातों को भूल कर बहु के स्वागत में लगे थे लेकिन पटिदारी में बहुत आक्रोश था.कोई भी घर के ख़ुशी में शामिल होना नहीं चाह रहा था.लोग बारात के भोजन की चर्चा दबी जुबान से कर रहे थे और दामाद के अपमान का जोरों से.रस्गुल्ले का स्वाद अभी भी उन सभी को उद्वेलित कर रखा था.किसी ने ५० खाया,किसी ने १०० खाया और किसी ने खाने के साथ-साथ बाज़ी भी जीती ज्यादा खाने की.आते समय किसी ने गर्दन में ऊँगली डाल कर भोजन बाहर किया और कोई मज़े में वापस आया.लेकिन दामाद ने खाना नहीं खाया इसकी चर्चा वापस आने पर ही शुरू हुई।

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