मंगलवार, 15 मार्च 2011

सानिध्य से अवकाश

लो आ ही गया वह क्षण प्रिये,

अपने लम्बे सानिध्य से अवकाश प्रिये,

कुछ जीवन की आवश्यकता ,

कुछ कर्त्तव्य का बोध, अस्वीकार्य किन्तु अपरिहार्य प्रिये।

अपने लम्बे सानिध्य से अवकाश प्रिये,

जीवन के इस कठिन मोड़ पर ,

हर निर्णय है एक परिणाम प्रिये,

निर्विकार सा खड़ा हूँ,किसकी सुनूं इस क्षण,

अपने हृदय की या फिर मस्तिष्क का ,

दोनों हैं अपने निर्णय पर अडिग प्रिये,

अपने सानिध्य से अवकाश प्रिये,

कितना क्षणभंगुर रहा अपना लम्बा साथ प्रिये,

अभी तो थी शुरुआत अभी देखो यह समाप्त प्रिये,

अपने सानिध्य से अवकाश प्रिये,

अवचेतन मन को यह आभास नहीं,

जो पास थे अब पास नहीं,

एक हवा का झोंका जैसे देता इस अस्तित्व का एहसास प्रिये,

अपने सानिध्य से अवकाश प्रिये,

अब तो केवल प्रतीक्षा है करना प्रिये

इस अवकाश के बाद पुनः अपना सानिध्य प्रिये।

आओ एक दुसरे के लिए शुभकामना करें ,

सुखमय और सफ़ल हो हम दोनों का अवकाश प्रिये।