गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

बसंत

कब आयेगा बसंत  रे सखी
कब होंगे मेरे पात हरे
कब आयेंगे पंछी तरु पर
कब होंगे मेरे साथ सखे

अवरोध   बना खड़ा मैं झांकता 
उस असीम को अपलक निहारता
जिस आँचल में खग ब्रिंद भागते
थकते तो मुझमे चुप जाते,

कभी खोजता उस पथिक को
जिसने अपनी रैन बितायी
ऐसा क्या है मैं इतनी परायी
कभी  न कोई मेरी   सुध ही लेता

नितांत अकेला खड़ा स्तब्ध मैं\
सूरज की गर्मी में तपता
पतझड़ की ये  हवा के झोंके
हर क्षण ,हर पल,भय दिखाता

परित्यक्त पड़ा मैं अपने घर में
एकाकी के क्षण को गिनता
राहगीर की बैमनास्यता
मेरे दिल की घाव बढ़ाते

यह दुःख भी क्षण भंगुर सखी री
जीवन  फिर  होगी खुशहाल
नयी टहनियों पर फिर फुद्केंगे
छोटे चुलबुल चोंच चकोर
हरे ड़ाल पर, हरे पात पर नव जीवन का संचार


















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