सोमवार, 26 अगस्त 2013

चांदनी बेगम

बदरंग सी दोपहर ठहरा हुआ सा दिन
एकाकी जीवन में थकता हुआ  सा मन

सुबह की हलचल ,रुकता हुआ सा दिन
अलसाई जीवन में थकता हुआ सा मन

क्षण क्षण प्रतिक्षण धूमिल होता दृष्टिकोण
समय के प्रहार से टूटता हुआ सा मन

पूस की रात,फागुन के रंग अभी-अभी ,चैत के दिन
सावन के बाद अब तक  ,तरसा हुआ सा मन

भयावह रात की स्मृति धूमिल करते दिन
दिवस की अवहेलना ,प्रण करता हुआ सा  मन

सास बहु के शोर से अच्छी हैदर की कलम
उसाँसे भरी जीवन में थकता हुआ सा मन'

चलो "हैदर" ने  फ़िर से स्वप्निल  किया है दिन
 चांदनी बेगम की लकीरों से खुलता हुआ सा दिन



 















गुरुवार, 25 जुलाई 2013

मेरी बिटिया जो आज से कॉलेज जाने लगी

है कोई बात जो , आज करा रही एहसास
फलसफा है या है एक नयी जिंदगी की शुरुआत !

जूते के फीते बांधे ,बैग लिया ,कपड़ों  को  निहारा
माँ को बाय कहा  ,और  तेज़ी से निकल गयी

एक  नयी ऊँचाई   पर नया क्षितिज बनाने
इस नए क्षितिज पर नया सपना संजोने

शुरुआत की कुछ कच्चे पक्के एहसासात होंगे
इन एहसासों की नीव पर कुछ ज़िन्दगी के उसूल होंगे

इन उसूलों पर  चलके चाँद छूने की जिद होगी
फूल सी जान को कांटो पर चलने की शब्  होगी

हर एक शुबह एक नयी मंजिल होगी
फिर शाम ढले मंजिल को छूने  का शबब होगा

इन  मंजिलों के बाद चाँद पर उसका इख्तियार होगा
फिर चाँद होगा सितारों की बारिश में पाँव के नीचे जमीं होगा

फिर  तेरी ऊंचाइयों के चर्चे मेरी जुबान पर होगा
और माँ तेरी खामोश रहकर हर पत्थर की सजदा  करेगी 



एस . के .झा






शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

"मेरी बदजुबानी से कैसा तूफां उमड़ आया
फिर आँखों से तेरी आंसू का सैलाब उमड़ आया ,

कहना था कुछ , कह कुछ मैं और आया
या अल्लाह ! यह तीर फिर तेरे दिल को चीर आया ,

शौक़ था ,तेरी ख़ुशी लाने मैं बाज़ार गया
ख्वामखाह ,मैं फूल समझ कांटे उठा लाया ,

रोशन हो तेरी राह ., यह सोचकर मैं शमा जला  आया
मुड़ के देखा ,यह क्या ,मैं आग का दरिया बहा आया ,

बुलंद करने तेरे सितारों को मै आसमां झुका  लाया
ऊफ्फ ! यह क्या ,मैं खुद अपना कफ़न ओढ़ आया

आबाद तेरा गुलशन रहे ,यह मेरी इबादत "सुमन"
यह अलग बात है ,तेरी बेरुखी का इलज़ाम मिरे सिर आया !!

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

इंतज़ार

इस बार छुट्टि
यों में गाँव जरूर जाना
माँ से मिलना बाबा से आशीष   लेना

सुना है बेटी अब कॉलेज जाने लगी
बेटा  भी सुना अब जिम्मेवार हो गया है

अब तो इस बार  जा ही  ही सकते  हो
जरूर जाना , इस बार गाँव,जरूर आना
, सुना है ,माँ के आँखों की रौशनी कम गयी है
बाबा भी अब चल फिर नहीं पाते

माँ से मिलना, उनकी सुनना, अपनी सुनाना
बाबा से भी मिलना ,भरोसा दिलाना

सुना है ,तिरे शहर में रातों को उजाला रहता है
गाँव जाना,रातों में ,जुगनुओं को जरूर बताना

सुना है क़त्ले आम अब तिरे शहर में आम हो गया
गाँव जाना ,भूल कर भी  मगर यह  जिक्र न करना

सुना है तिरे शहर  में रिश्ते भी लहूलुहान हो गए
बड़ों से मिलना और अपने होने का एहसास दिलाना

सुना है ओस की बूंदे चुनते चुनते देर हो गयी
गाँव जाना ,नदी के किनारों से मुआफी माँगना

गाँव जाना शाम को आसमां से बातें करना
शहर की रफ़्तार को कोसना और उससे सकून उधार लेना

हाँ ,महंगी न  सही ,कुछ टॉफियाँ जरूर ले लेना
बच्चों  को  बुलाना ,उन्हें देना ,उनकी खुशियाँ पढ़ना

एस . के .झा

रविवार, 6 जनवरी 2013

झुक गया फिर एक बार शर्म से मेरे नयन
हो गया उसके लहू से शर्मशार फिर यह गगन

है क्षितिज में चन्हुओर यह ममता का आर्त नाद
झुक गयी है धरतीं देख फैलता यह करुण  क्रांत 

है किसका यह  दोष् मोहन कब लोगे अवतार फिर
कब  होगा सुरक्षित अब  द्रौपदी का चीर फिर

एक ध्रितराष्ट्र के लिए तुमने रचा वह  घोर युद्ध
उकसा रहा है फिर तुम्हे  फिर से रचो वह घोर युद्ध


कांपती है यह धरा अब अपने ही आंसुओं के भार से
जीर्ण विदीर्ण पड़ी है वह लाल होकर अपने लहू से

होगा पतन  कुछ इस तरह   से  सोच सकता है न कोई
 गार्त होगा कुछ इस तरह से सोच सकता है न कोई

लेकिन चली अब ऐसी हवा है दुशाशन की अब ख़ैर नहीं
दुर्गा ने अब लिया मोर्चा रक्तबीज की अब खैर नहीं

"निर्भया" होकर लड़ी वह ज़िन्दगी से जूझती
मौत था स्तब्ध खड़ा और ज़िन्दगी भी झांकती

वक़्त भी थम सा गया था देश भी रुक सा गया था
हर लबों पर नाम था बस एक अकेली "दामिनी"

गली नुक्कड़ से लेकर क़ुतुब के मीनार तक
रो पड़े थे नाम लेकर तेरा "दामिनी "

हम सबने संकल्प लिया है तलवार लेकर हाथों में
छीनकर ही लौटेंगे अब खुशहाली  तुम्हारी हाथों में

तुम भी चलो ,हम भी चलें लेकर मशाल इन हाथों में
अब नहीं होगा कभी फिर ऐसा अँधेरा रातों में