रविवार, 6 जनवरी 2013

झुक गया फिर एक बार शर्म से मेरे नयन
हो गया उसके लहू से शर्मशार फिर यह गगन

है क्षितिज में चन्हुओर यह ममता का आर्त नाद
झुक गयी है धरतीं देख फैलता यह करुण  क्रांत 

है किसका यह  दोष् मोहन कब लोगे अवतार फिर
कब  होगा सुरक्षित अब  द्रौपदी का चीर फिर

एक ध्रितराष्ट्र के लिए तुमने रचा वह  घोर युद्ध
उकसा रहा है फिर तुम्हे  फिर से रचो वह घोर युद्ध


कांपती है यह धरा अब अपने ही आंसुओं के भार से
जीर्ण विदीर्ण पड़ी है वह लाल होकर अपने लहू से

होगा पतन  कुछ इस तरह   से  सोच सकता है न कोई
 गार्त होगा कुछ इस तरह से सोच सकता है न कोई

लेकिन चली अब ऐसी हवा है दुशाशन की अब ख़ैर नहीं
दुर्गा ने अब लिया मोर्चा रक्तबीज की अब खैर नहीं

"निर्भया" होकर लड़ी वह ज़िन्दगी से जूझती
मौत था स्तब्ध खड़ा और ज़िन्दगी भी झांकती

वक़्त भी थम सा गया था देश भी रुक सा गया था
हर लबों पर नाम था बस एक अकेली "दामिनी"

गली नुक्कड़ से लेकर क़ुतुब के मीनार तक
रो पड़े थे नाम लेकर तेरा "दामिनी "

हम सबने संकल्प लिया है तलवार लेकर हाथों में
छीनकर ही लौटेंगे अब खुशहाली  तुम्हारी हाथों में

तुम भी चलो ,हम भी चलें लेकर मशाल इन हाथों में
अब नहीं होगा कभी फिर ऐसा अँधेरा रातों में