गुरुवार, 25 जुलाई 2013

मेरी बिटिया जो आज से कॉलेज जाने लगी

है कोई बात जो , आज करा रही एहसास
फलसफा है या है एक नयी जिंदगी की शुरुआत !

जूते के फीते बांधे ,बैग लिया ,कपड़ों  को  निहारा
माँ को बाय कहा  ,और  तेज़ी से निकल गयी

एक  नयी ऊँचाई   पर नया क्षितिज बनाने
इस नए क्षितिज पर नया सपना संजोने

शुरुआत की कुछ कच्चे पक्के एहसासात होंगे
इन एहसासों की नीव पर कुछ ज़िन्दगी के उसूल होंगे

इन उसूलों पर  चलके चाँद छूने की जिद होगी
फूल सी जान को कांटो पर चलने की शब्  होगी

हर एक शुबह एक नयी मंजिल होगी
फिर शाम ढले मंजिल को छूने  का शबब होगा

इन  मंजिलों के बाद चाँद पर उसका इख्तियार होगा
फिर चाँद होगा सितारों की बारिश में पाँव के नीचे जमीं होगा

फिर  तेरी ऊंचाइयों के चर्चे मेरी जुबान पर होगा
और माँ तेरी खामोश रहकर हर पत्थर की सजदा  करेगी 



एस . के .झा






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