सोमवार, 26 अगस्त 2013

चांदनी बेगम

बदरंग सी दोपहर ठहरा हुआ सा दिन
एकाकी जीवन में थकता हुआ  सा मन

सुबह की हलचल ,रुकता हुआ सा दिन
अलसाई जीवन में थकता हुआ सा मन

क्षण क्षण प्रतिक्षण धूमिल होता दृष्टिकोण
समय के प्रहार से टूटता हुआ सा मन

पूस की रात,फागुन के रंग अभी-अभी ,चैत के दिन
सावन के बाद अब तक  ,तरसा हुआ सा मन

भयावह रात की स्मृति धूमिल करते दिन
दिवस की अवहेलना ,प्रण करता हुआ सा  मन

सास बहु के शोर से अच्छी हैदर की कलम
उसाँसे भरी जीवन में थकता हुआ सा मन'

चलो "हैदर" ने  फ़िर से स्वप्निल  किया है दिन
 चांदनी बेगम की लकीरों से खुलता हुआ सा दिन



 















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