सोमवार, 24 मई 2010

छोटी सी ब्यथा

आम आदमी ज़िन्दगी के जद्दोजेहद से बहार निकल नहीं पाता है.मेरे पिता की उम्र ७५ साल हो चली है.उनकी सोच अभी भी समाज के इर्द गिर्द ही घूमती है.आज के दौर में जब परिवार का स्वरुप बदल चूका है,प्रेम विवाह पूरी तरह से समाज को स्वकेंद्रित बना चूका है .लोग गाँव को पूरी तरह त्याग कर शहर की तरफ भाग रहे हैं.गाँव में कौन रहेगा यह बहुत बड़ी असमंजस की बात है फिर भी समाज के नज़र में अपनी जिम्मेदारियां सिद्ध करने के लिए बड़े बुजुर्ग गाँव को संवारने में लगे हैं.दो बातें हो सकती हैं.या तो उन्हें यह आशा है की मेरे बच्चे अंततः गाँव को अपनाएंगे या फिर वो समाज में यह साबित करने चाह रहे हैं की उन्होंने अपने संतान के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाया है और उनके लिए अपनी ज़मीन पर आशियाना बना रखा है वो जब चाहे तब आ कर रह सकते है.लेकिन इसमें एक महत्वपूर्ण बात यह है इस क्रम में वोह अपना पैसा खर्च कर रहे हैं जिसकी ज़िन्दगी के आखिरी दिनों में उन्हें बहुत जरूरत होगी.आज माता पिता के प्रति जिम्मेवारी एक इतिहास की बात हो चुकी है मुझे यह भय सताता है की आखिरी दिनों में उन्हें कष्ट न हो। खैर,आगे-आगे देखिये होता है क्या.

शुक्रवार, 14 मई 2010

जीय हो बाबु

सुपर ३० को टाइम मैगज़ीन द्वारा बेस्ट ऑफ़ एशिया में जगह.आज के अख़बार में यह खबर पढ़ी.आनंद कुमार जो की इस संस्था के संचालक और व्यवस्थापक दोनों हैं उनको और सभी बिहारवासियों को हार्दिक बधाई.शब्दों में इस संस्था के कार्य और सफलता को व्यक्त करना शायद मेरे लिए संभव नहीं.परन्तु एक बात निश्चित है की बिहार की गरिमा अक्क्षुण है यदि बिहार की छवि को किसी ने धुमिल किया है तो केवल वहां की राजनीति ने.

शनिवार, 1 मई 2010

सार्थक

कुछ दिन पहले एक किताब पढ़ी थी,"सूत्रधार".कथाकार संजीव द्वारा लिखित ये किताब भोजपुरी रंगमंच या नौटंकी के जनक भिखारी ठाकुर के जीवनी पर आधारित है. यह किताब संजीव के अद्भुत शोध और जिजीविषा का परिणाम है.जहाँ तक मुझे ज्ञान है संजीव ने यह किताब काफी शोध और खोज के बाद लिखी थी.भोजपुरी भाषा का गढ़ छपरा और आस-पास के इलाकों में जाकर काफी समय बीते उन्होंने.वास्तविक जानकारी के लिए भिखारी ठाकुर के समकालीन कुछ लोगों से मिली जानकारी उनके लिए भी सूत्रधार बनी होगी।

आज के कथाकारों की वातानुकूलित ज़िन्दगी से दूर संजीव का अपना संसार है।

भारत और भारतीय को एक नया आयाम देने के पुरजोर कोशिश में लगे संजीव को मेरा शत-शत नमन.मैं कुछ कर नहीं सकता लेकिन सराह तो सकता हूँ.जागो मीडिया वालों IPL में चोर पकड्ने से ज्यादा अहमियत यदि भारत के सुदूर क्षेत्रों में बिखरी मोतियों को सहेजने में लगाया जाये तो मेरे हिसाब से ज्यादा सार्थक काम होगा.