तसव्वुर तो थी कभी ,मगर सच होगा ,
ज़िन्दगी तू ऐसे भी कभी reboot होगा
अफ़साने तो सुने ,मगर ये हकीकत होगा
ज़िन्दगी तू इस तरह से भी दिलफ़रेब होगा
चल रहा था अपनी ही धुन में ज़माना ,
और ये ही शायद तुम्हें नागवार होगा
बदहवास भागते मासरे इस सफर में
उनकी ये डोर फिर तुम्हारे हाथ होगा
भूख की ये ज़िद्द और सफर धूप की
किसे मालूम तू इस तरह बेवफा होगा
कभी तो सोचता ,इस फूल से पांवों में
पाजेब तो नहीं ,ये जख्म के निशाँ होंगे
निहार के सो गयी होगी वो मां के आँखे
ये उम्र का असर नहीं ,इंतज़ार की इंतेहा होगी प
समेट ली कुछ ज़िन्दगी तुमने
फैला दिया कुछ बेबसी की चादरेंऐसा तो नहीं ,तू इस तरह बेमुर्रवत होगा