गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

नव वर्ष की शुभकामना

प्राची की नव किरण,नव पुकार जगत का

नव -नव क्षितिज पर नव श्रृंगार समय का,


नव है जीवन की परिभाषा नव लहू यौवन का


रश्मिरथी बन कर आई है नव वर्ष जगत का ।


श्रृष्टि के हर अंश में हो , नव संचार सृजन का,


धरा के कण-कण में हो उन्माद हर कम्पन का


मानव के जीवन में हो हर पल अब सुख का

जीवन के उत्सव में हर क्षण अब आनंद का



















शनिवार, 18 दिसंबर 2010

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

बदलता बिहार

बिहार का रिजल्ट आ गया है .ख़ुशी का माहोल है ,कुछ घरों में छोड़ क़र.नितीश कुमार को लोगों नें एक बार फिर बिहार चलाने का जनादेश दिया है.पिछली बार सड़के बनी इस बार कारखाना बने और रोज़गार मिले इस उम्मीद में .सारे समीकरण ,चाहे वोह जाति के हों या अगड़े- पिछड़े का सब बेकार हो गये. बिहार को एक छोटी सी किरण विकास की दिखी और लोग उमड़ पड़े वोट देकर जिताने में।
सभी क्षेत्र में थोडा-थोडा विकास हुआ,आधारभूत संरचना,शिक्षा,कानून व्यवस्था और आर्थिक क्षेत्र में लेकिन बहुत दूर जाना है अभी.अगले पांच साल में इस सरकार को बहुत कर दिखाना है नहीं तो अगले चुनाव में सूपड़ा साफ़।
लालू न सामाजिक न्याय के नाम पर बिहार को गन्दा नाला बन कर छोड़ दिया था।
मुझे याद है किस तरह लालू की बेटी की शादी में पुरे पटना में दुकानों को लूटा गया.किस तरह साधू और सुभाष यादव पुरे राज्य में पैसा लूटने का कारोबार चला रहे थे.लोगों में आक्रोश था और नितीश जी ने कम से कम अपने आप को इस लूट तंत्र का हिस्सा नहीं बनने दिया है।
इन सब बातों का जिक्र इस ख़ुशी के माहोल में जरूरी नहीं केवल ये दुआ की बिहार सबसे अच्छे राज्यों में शुमार हो।

शुभकामना सारे बिहारवासियों को बिहार को अपना घर स्वीकारने वालों को.

बुधवार, 17 नवंबर 2010

अवसान

निस्तब्ध था आकाश , और स्थिर्तम धरा
देख अपने चन्द्र नें , है यह कैसा रूप धरा
क्यों चमक फीकी पड़ी इस चाँद की,
क्यों शून्य में झांकता है यह खड़ा
क्या पंहुच इसकी हुई है दूर, उस बाल मन से
या मनुष्य ने है किया, कोई नया दीवार खड़ा,
क्या ढूंद्ता है यह पुकार "चंदा मामा" का,
या है यह ढूद्ता उस सांवरिया को जिसकी सजनी है "चंद्रमुखी"
है यह कैसी काली चादर ओढ़ी इस धरा ने,क्यों है अपनी अद्भुत रूप छुपाती ,
क्या विकृत किया हैं मनुष्य ने, या लूटी किसी ने इसकी हरीयाली ।
शोर से विचलित हो शिशु भूल गया चंदा मामा को
चकाचोंध में खोकर सांवरिया भूल गया चंद्रमुखी को
भयभीत खड़ा यह चन्द्र देखता अपने पतन को
शायद अवसान समीप हो चला इस ब्रह्मान्ड का


गुरुवार, 16 सितंबर 2010

जन्मदिन मुबारक

title="पर पसंद करें">height="30">दिवस की उस अरुणिम बेला में थे तुम आये,
सुवासित करने जीवन के मृदु पलों को तुम आये,

पुलकित हृदय अश्रुपूर्ण नयन आलिंगन जननी का
शुंभाशीष शुभाशीष आह्लादित आँगन।

तुम ही हो जीवन के केंद्रबिंदु पर
सुभगे तुम ही जीवन के हर निर्णय पर.
.
दिन महीने साल बीत कर लाया तुम्हे वयः संधि पर ,
आशंकित मन व्यथित हो जाता तुमसे बिछुड़कर।

मेरी यही कामना सुभगे तुम सफल हो जीवन पथ पर,
bar -बार यह जन्मदिन आते रहे अनंत बार।

(मेरी पुत्री को जिसका आज जन्म दिन है)

गुरुवार, 2 सितंबर 2010


स्वप्नदंश या मरीचिका ,निर्झर बताओ यह जीवन क्या है ,

तेरी अविकल धार या अकाल मृत्यु का आँगन ,निर्झर बताओ यह जीवन क्या है।"

सीता का वनवास,या राधे की आस,

द्रौपदी की दुविधा या देवयानी का ताप,

निर्झर बताओ यह जीवन क्या है

उस अबोध का मृत्यु ह्रास, जिसने देखे कुल चार बसंत

या उस ममता का अनंत आर्त नाद ,जिसने दिया जीवन अनंत,















शनिवार, 28 अगस्त 2010

निःशब्द


सांझ सवेरे हवेली की देहरी पर बाट जोहती माँ,
अपने ही जाये की आस में राह जोहती माँ,

अपने आप पर अबिस्वास की लकीर खींचती माँ,
ज़िन्दगी से हारी लगती है यह अपनी माँ,

कितना छोटा था वह जब जन्म दिया था उसको
लगता नहीं की अब कभी ,फिर पाउंगी उसको

अपनी नन्ही हाथों में चावल की बगिया लिये
मिटटी में खेलता रहता गिलास में पानी लिये,

माँ की लोरी सुन कर वह खो जाता था सपनो ,में ,
माँ और चंदा मामा ही थे उसके अपनों में,

उसका सुख ही अपना सुख था,उसका दुःख ही माँ का दुःख
उसकी आँखों से हंसती थी वह और उसकी ही आँखों से rothi



सब कुछ गँवा दिया माँ ने हंसी सहेजकर उसकी
और क्या बांकी रहा था झोली में उसकी

गया था जब से वह अपने माँ से दूर
सुध न ली थी उसने, उस जननी को भूल

बैधाव्य से श्रापित वह करती थी आस
अब किन्तु विधाता से ही उसकी आस,

एक दिन पड़ी मिली वह ,देहरी के बहार ,हाथ में चिट्ठी फँसी थी
ankhen खुली थी आस में
aayega nahin wah अब कभी लौट के उसके पास बहती नहीं अब माँ का साथ

सब झूठ लिखा मुन्नवर राणा न
"जी करता है फिर से फरिश्ता बन जाऊं,
माँ से इतना लिपट जाऊं की बच्चा बन जाऊं"