शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

इंतज़ार

इस बार छुट्टि
यों में गाँव जरूर जाना
माँ से मिलना बाबा से आशीष   लेना

सुना है बेटी अब कॉलेज जाने लगी
बेटा  भी सुना अब जिम्मेवार हो गया है

अब तो इस बार  जा ही  ही सकते  हो
जरूर जाना , इस बार गाँव,जरूर आना
, सुना है ,माँ के आँखों की रौशनी कम गयी है
बाबा भी अब चल फिर नहीं पाते

माँ से मिलना, उनकी सुनना, अपनी सुनाना
बाबा से भी मिलना ,भरोसा दिलाना

सुना है ,तिरे शहर में रातों को उजाला रहता है
गाँव जाना,रातों में ,जुगनुओं को जरूर बताना

सुना है क़त्ले आम अब तिरे शहर में आम हो गया
गाँव जाना ,भूल कर भी  मगर यह  जिक्र न करना

सुना है तिरे शहर  में रिश्ते भी लहूलुहान हो गए
बड़ों से मिलना और अपने होने का एहसास दिलाना

सुना है ओस की बूंदे चुनते चुनते देर हो गयी
गाँव जाना ,नदी के किनारों से मुआफी माँगना

गाँव जाना शाम को आसमां से बातें करना
शहर की रफ़्तार को कोसना और उससे सकून उधार लेना

हाँ ,महंगी न  सही ,कुछ टॉफियाँ जरूर ले लेना
बच्चों  को  बुलाना ,उन्हें देना ,उनकी खुशियाँ पढ़ना

एस . के .झा

रविवार, 6 जनवरी 2013

झुक गया फिर एक बार शर्म से मेरे नयन
हो गया उसके लहू से शर्मशार फिर यह गगन

है क्षितिज में चन्हुओर यह ममता का आर्त नाद
झुक गयी है धरतीं देख फैलता यह करुण  क्रांत 

है किसका यह  दोष् मोहन कब लोगे अवतार फिर
कब  होगा सुरक्षित अब  द्रौपदी का चीर फिर

एक ध्रितराष्ट्र के लिए तुमने रचा वह  घोर युद्ध
उकसा रहा है फिर तुम्हे  फिर से रचो वह घोर युद्ध


कांपती है यह धरा अब अपने ही आंसुओं के भार से
जीर्ण विदीर्ण पड़ी है वह लाल होकर अपने लहू से

होगा पतन  कुछ इस तरह   से  सोच सकता है न कोई
 गार्त होगा कुछ इस तरह से सोच सकता है न कोई

लेकिन चली अब ऐसी हवा है दुशाशन की अब ख़ैर नहीं
दुर्गा ने अब लिया मोर्चा रक्तबीज की अब खैर नहीं

"निर्भया" होकर लड़ी वह ज़िन्दगी से जूझती
मौत था स्तब्ध खड़ा और ज़िन्दगी भी झांकती

वक़्त भी थम सा गया था देश भी रुक सा गया था
हर लबों पर नाम था बस एक अकेली "दामिनी"

गली नुक्कड़ से लेकर क़ुतुब के मीनार तक
रो पड़े थे नाम लेकर तेरा "दामिनी "

हम सबने संकल्प लिया है तलवार लेकर हाथों में
छीनकर ही लौटेंगे अब खुशहाली  तुम्हारी हाथों में

तुम भी चलो ,हम भी चलें लेकर मशाल इन हाथों में
अब नहीं होगा कभी फिर ऐसा अँधेरा रातों में








सोमवार, 12 नवंबर 2012

एक दीपक

टिमटिमाती जा रही यह दिए की लौ देखो
बिखरता जा रहा है यह अँधेरा यार दखो

है अकेला किन्तु जोश कितना इसमें देखो
हार कर चला अँधेरा अब सिमटता यार देखो

जब तक रहेगा प्राण शक्ति तब तक यह लड़ता रहेगा
क्षीण होती ही रहेगी तम का अब प्राण देखो

रात भर जलती रहेगी चन्द्र के अवसान तक यह
एक केवल सूरज के तड़प  में दिवस के आह्वान तक यह

सूर्य की जब लालिमा ने छू लिया इसके रगों को
कर दिया इसने विसर्जित अपना यह मन प्राण देखो

है तिमिर की यह कालसर्प चन्हूओर बिखरी
उसमे अकेला प्रकाश की यह दरबार देखो

लहर उठेगी एक दिन जब इसकी विजय पताका
हर तरफ होगा उजाला प्रेम का है पर्व देखो

हम रहें न तुम रहो लेकिन युगों  तक इसकी रहेगी उम्र देखो
रहा था ,रहा है,और रहेगा तम समर का यह सतत वीर देखो


-एस के झा

गुरुवार, 1 मार्च 2012

अहाँ के नाम


बहुत दिन भ गिल
मोन    लागल  अछि
ने    कोनो   चिट्ठी   ने   पत्री
ने फोने ने समाद
कोनो   समाचार नहि
गोसाविन  घर में बैस के
बाट  तकैत    छी
हम त एस्कर भ गेलहुं
फगुआ में  सबहक अबैया   छै
अहाँ टा के कोनो खबर नहि
रंग अबीर स डर होइत  अछि
मोन सशंकित भेल अछि
लोकक दृष्टि से बदलि  गेली
हम त एस्कर भ गेलहुं


गेरुआ खोल  पर जे गुलाबक फूल छल
तकर रंग उडि गेल
अहाँक नाम बला जे रुमाल छल
से फाईट गेल
जट्टा - जट्टिन से बदरंग भ गेल
कनिया पुतरा सब बेकार भ गेल
ख़ुशी त मानु अतीत   भ गेल
हम त एस्कर भ गेलहुं

आँगन में जे जोड़ा गुलाब छल से मुरझा गेल
भनसा ओसारा पर जे सुग्गा छल से कतहु   चल   गेल
पछुआर बाला बच्चा सभ आब नहि अबैत छथि
एकाकी में जीवन के अभिशाप भोगित छि
हम त एस्कर भ गेलहुं

बलान के कछार पर जे नाम लिखने रही
 से मिटा  गेल
होइत छल जे ओ ताजमहल जकां रहत
मुदा ओ त पाइन से मिटा गेल
हम त एस्कर भ गेलहुं


गामक    जरदालू  गाछ
पर लिखल नाम मुदा औखन अछि
ओकरा   पाइन बिहारि नहि मिटा सकलहि
एही अवलंब अछि
अहाँ आएब आर जरूर आएब

इति






मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

घुरि आऊ गाम

ठाड़ छी  घरक पछुआर  में
बस्बिट्टी लग
बांस  आब नै,खाली जमीन छै,
दूर देखैत छि कलम बाग़
 सेहो   आब कम भ गैलाई
 खाली घर सब देखि रहल छि
घरक कात  से    
आवाज़ आयेल,बसंता हर ल
के जाईत ऐछ .
मुदा नहि
ई भ्रम छल
बसंता आब गाम में नहि
रहैत ऐछ,अलीगढ गेल अछी कमाई लेल
आब गाम में हर नहि चलैत छैक
ट्रक्टर चलैत छैक
खलिहान दिस गेलौं
लागल जेना गामक किछु काका
लोकिन एलाह अछि
मुदा खाट त  ख़ाली पडल अछि 
खलिहान दिस सेहो क्यों नहि
ख़ाली खलिहान,खाली दरवाज़ा
अचानक स्तब्ध भ
ठाड़ भ गेलहुं
की हम गाम में छि
या कतहु परदेस में
आब खेत में बाबा मेघडम्बर
ल के खेतक आइर
पर नहीं रहित छैथ   
आब गाम में आँगन में हुड दंग नहि
 नेन्ना भुटका के
 गाम में अन्हरिया राईत  में
भगजोगनी नहीं पकडैत छैक
नेन्ना भुटका सब 
आब क्यों काका काकी ,बाबा बाबी 
खिस्सा नहि सुनबैत छैक
नेन्ना भुटका के
आब गाम में दर्द नहीं छैक अनका लेल
आब गाम में सिनेमा हॉल छैक
आब गाम में शीशा बाला दुकान
आब  गाम में शराबक भट्ठी सेहो छैक 
अचानक  दाई शोर पारै छैथ
घुरि आऊ बाऊ यौ
क्यों नहि भेटत आब 
गाम आब किदन भ गेले


गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

बसंत

कब आयेगा बसंत  रे सखी
कब होंगे मेरे पात हरे
कब आयेंगे पंछी तरु पर
कब होंगे मेरे साथ सखे

अवरोध   बना खड़ा मैं झांकता 
उस असीम को अपलक निहारता
जिस आँचल में खग ब्रिंद भागते
थकते तो मुझमे चुप जाते,

कभी खोजता उस पथिक को
जिसने अपनी रैन बितायी
ऐसा क्या है मैं इतनी परायी
कभी  न कोई मेरी   सुध ही लेता

नितांत अकेला खड़ा स्तब्ध मैं\
सूरज की गर्मी में तपता
पतझड़ की ये  हवा के झोंके
हर क्षण ,हर पल,भय दिखाता

परित्यक्त पड़ा मैं अपने घर में
एकाकी के क्षण को गिनता
राहगीर की बैमनास्यता
मेरे दिल की घाव बढ़ाते

यह दुःख भी क्षण भंगुर सखी री
जीवन  फिर  होगी खुशहाल
नयी टहनियों पर फिर फुद्केंगे
छोटे चुलबुल चोंच चकोर
हरे ड़ाल पर, हरे पात पर नव जीवन का संचार


















मंगलवार, 15 मार्च 2011

सानिध्य से अवकाश

लो आ ही गया वह क्षण प्रिये,

अपने लम्बे सानिध्य से अवकाश प्रिये,

कुछ जीवन की आवश्यकता ,

कुछ कर्त्तव्य का बोध, अस्वीकार्य किन्तु अपरिहार्य प्रिये।

अपने लम्बे सानिध्य से अवकाश प्रिये,

जीवन के इस कठिन मोड़ पर ,

हर निर्णय है एक परिणाम प्रिये,

निर्विकार सा खड़ा हूँ,किसकी सुनूं इस क्षण,

अपने हृदय की या फिर मस्तिष्क का ,

दोनों हैं अपने निर्णय पर अडिग प्रिये,

अपने सानिध्य से अवकाश प्रिये,

कितना क्षणभंगुर रहा अपना लम्बा साथ प्रिये,

अभी तो थी शुरुआत अभी देखो यह समाप्त प्रिये,

अपने सानिध्य से अवकाश प्रिये,

अवचेतन मन को यह आभास नहीं,

जो पास थे अब पास नहीं,

एक हवा का झोंका जैसे देता इस अस्तित्व का एहसास प्रिये,

अपने सानिध्य से अवकाश प्रिये,

अब तो केवल प्रतीक्षा है करना प्रिये

इस अवकाश के बाद पुनः अपना सानिध्य प्रिये।

आओ एक दुसरे के लिए शुभकामना करें ,

सुखमय और सफ़ल हो हम दोनों का अवकाश प्रिये।