क्षेत्रवाद,जातिवाद,धर्मवाद,इत्यादि ऐसी परम्पराएँ हैं जिसका विरोध दिखाने के लिए हर कोई करता है लेकिन समर्थन भी , अपने अंतर्मन से , हर कोई कर रहा है.इतिहास गवाह है कोई भी दो क्षेत्र आपस में सहमति से एक दुसरे के साथ नहीं हुए हैं जब तक किसी एक के राजा ने दुसरे से उसे छीना न हो.किसी भी द्वन्द या विरोध की शुरुआत अभाव से होती है.अगर संमाज में हर सदस्य एक दुसरे का मोहताज न हो तो संमाज में आपसी द्वन्द ही न हो.कोंई भी समाज या क्षेत्र दुसरे क्षेत्र के लोगों को तब तक ही स्वीकार करेगा जब तक उसकी अपनी सुख सुविधाओं पर कोंई असर न हो.अपना स्वार्थ जिस दिन से प्रभावित होने लगेगा उस दिन से ही विरोध शुरू हो जायेगा।
मुंबई में जो हुआ वह आज या कल कोलकाता में होगा, चेन्नई में होगा और अन्य बड़े शहरों में भी होगा.जरूरत है बिहार की सरकार और केंद्र सरकार को इसके मानसिक और सामाजिक पहलू को समझ कर बिहार को आगे बढ़ने का.उड़ीसा जो आज से कुछ वर्ष पहले तक बहुत पिछड़ था आज उद्योगों को बढ़ावा दे रह है और वहां काफी संख्या में नए उद्योग लग रहे हैं और वहां के लोग जो किसी और राज्य में थे वापस आ रहें हैं या आना चाह रहे हैं.जो वहां वापस आ चुके हैं उनकी इच्छा भी अपने लोगों को वापस लाने की है.प्रबंधन के असहयोग के कारन वोह सफल नहीं हो रह हैं लेकिन उनकी पूरी कोशिश रहती है.क्या बिहार ऐसा नहीं हो सकता है.जरूरत है एक सफल प्रयास की और सरकार को अपने लोगों का दर्द समझने का.
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