सोमवार, 12 नवंबर 2012

एक दीपक

टिमटिमाती जा रही यह दिए की लौ देखो
बिखरता जा रहा है यह अँधेरा यार दखो

है अकेला किन्तु जोश कितना इसमें देखो
हार कर चला अँधेरा अब सिमटता यार देखो

जब तक रहेगा प्राण शक्ति तब तक यह लड़ता रहेगा
क्षीण होती ही रहेगी तम का अब प्राण देखो

रात भर जलती रहेगी चन्द्र के अवसान तक यह
एक केवल सूरज के तड़प  में दिवस के आह्वान तक यह

सूर्य की जब लालिमा ने छू लिया इसके रगों को
कर दिया इसने विसर्जित अपना यह मन प्राण देखो

है तिमिर की यह कालसर्प चन्हूओर बिखरी
उसमे अकेला प्रकाश की यह दरबार देखो

लहर उठेगी एक दिन जब इसकी विजय पताका
हर तरफ होगा उजाला प्रेम का है पर्व देखो

हम रहें न तुम रहो लेकिन युगों  तक इसकी रहेगी उम्र देखो
रहा था ,रहा है,और रहेगा तम समर का यह सतत वीर देखो


-एस के झा

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